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- नवजात शिशु अपने साथ नये अनुभव लाते हैं।
- जितना समय बीतता जाएगा उतना ही आपके मातृत्व में निखार आता जाएगा।
- आपे छोटे से शिशु के साथ हर पल का मज़ा ले।
माँ होने का जितना अनुभव आप लेती जाएँगी, उतना ही आप अपने नवजात शिशु के बारे मे और जानती जाएँगी। मैने खुद भी माँ बनने के बाद बहुत सी ऐसी चीज़ो के बारे मे जाना जो पहले मेरे लिए भी एक रहस्य ही थी। इस लेख के ज़रिए मैं आपसे बाँटना चाहूँगी नवजात शिशुओं के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ, जो मैने अपने अनुभव से सीखी है।
जब मैने अपने शिशु को पहली बार देखा तो मुझे कुछ हैरानी भी हुई। क्यो मेरी बेटी विचित्र सी दिख रही है? क्यो उसका सिर शंकु के आकर में है? क्यो उसकी आँखे और चेहरा फूला हुआ था? क्यो उसकी पीठ और बाजू पर बहुत से बाल थे? मेरा शिशु बिल्कुल भी वैसे नही था जैसा मैने सोचा था। खैर, समय के साथ साथ मेरा शिशु बेहतर होता गया।
लेकिन बाद में मैने जाना कि उसके सिर के शंकु आकार होने का कारण क्या था? असल मैं जब शिशु जन्म देने वाली नलिका से बाहर आता है तो उसका सिर अपने आकार को ढाल लेता है ताकि वो आसानी से बाहर आ सके। जन्म के वक़्त बच्चे का सिर बहुत ही नर्म होता है। मैने यह भी नोटीस किया कि जन्म से अगले ही दिन उसके आकार में फ़र्क आ गया और यह पहले दिन से काफ़ी बेहतर लगने लगा।
इसी तरह से उसकी आँखे और चेहरे के फूला होने की वजह गर्भ में पाया जाने वाला फ्लूईड था। क्योंकि शिशु ने काफ़ी समय उस फ्लूईड में बिताया है, तो इस वजह से उसके चेहरे और आँखों पर फुलावट आ जाती है। इसके साथ साथ कुछ समय के बाद पीठ के पीछे पाए जाने वाले बाल भी गायब गए।
मैने अपने पुराने लेख में ज़िक्र किया था कि गर्भनाल का सूखा रहना बहुत जरूरी है। क्योंकि मैने इसको ग़लती से गीला कर दिया था (मैने अपने शिशु को स्पंज बाथ की जगह पानी से नहला दिया था), तो मेरे शिशु के केस में तो गर्भनाल एक महीने बाद झड़ी थी। आपको यह ग़लती नहीं करनी है और गर्भनाल को सूखने देना है। इसको खुद से ही झड़ने दें और खींच कर अलग करने का प्रयास तो बिल्कुल भी ना करें। जब गर्भनाल झड़ेगी तो उसमे खून का पाया जाना सामान्य बात है। जब तक आपको किसी संक्रमण का अंदेशा ना हो तब तक डरने की कोई जरूरत नही है।
आइए अब हम बात करते है नरम स्थलों के बारे में। सभी जानते है कि शिशु के सिर पर नरम स्थल होते है। उनके सिर पर दो जगह नरम स्थल होते है, एक सिर के उपर बीचो-बीच और दूसरा सिर के ठीक पीछे। यह आवश्यक है कि आप उन दोनों नरम स्थलो के साथ सावधानी बरते, पर डरने की जरूरत नही है क्योंकि यह स्थल इतने भी नाज़ुक नहीं होते।
जब मैं अपने शिशु को दूध पिलाती थी तो मैने भी महसूस किया कि उसके सिर के इन नरम स्थलों पर ऐसा महसूस होता था जैसे कुछ धड़क रहा हो। शुरू मे तो मैं घबरा गई थी और जब मैने अपने शिशु विशेषज्ञ से इसके बारे में पूछा तो उसने बताया कि यह बहुत ही सामान्य बात है। असल में यह नरम स्थल सिर के ठीक उस जगह पर होती है जहाँ पर ब्लड वेसल्स मस्तिष्क को ढक रही होती है। जिस समय शिशु दूध पी रहा होता है या रो रहा होता है, उस वक़्त तो इन मे धड़कन या कंपन ज़्यादा महसूस होती है।
नवजात शिशुओं की त्वचा बहुत ही रूखी होती है। उसको उतराने के बारे मे कतई ना सोचे बल्कि उस पर तेल की, बेबी क्रीम की या उस जैसे किसी भी चीज़ की मालिश करें। जैसे ही आपका शिशु अपने आप को नए वातावर्ण के अनुकूल बना लेगा, उसकी त्वचा भी ठीक हो जाएगी। यह छाल जैसी रूखी त्वचा खुद ही उतर जाएगी।
मेरे शिशु के भी कलाई, हाथ, पैर और चेहरे पर ऐसी ही त्वचा के धब्बे थे, जो समय के साथ (एक महीने से भी कम के समय में) अपने आप ठीक हो गये थे।
अभी तक तो आप अपने नवजात शिशु के रोने की आदत से वाकिफ़ हो गई होंगी और आदि भी हो गई होंगी। आपको समझना होगा कि आपके शिशु के पास आपसे बात करने का और कोई तरीका नहीं है। नवजात शिशु कई बार तो इतनी ज़ोर से रोते है कि आपके पड़ोसी भी जाग जाते है। वो माताएँ बहुत खुशनसीब है जिनके शिशु शांत रहते हैं।
जैसे जैसे आप अपने बच्चे की रोने की आदत के आदि होती जाएँगी वैसे वैसे आप यह भी समझने लगेंगी की उसके रोने के कारण क्या है और कैसे वो हर कारण के लिए अलग से रोता है। मेरे केस में तो एक महीने के अंदर ही समझ गई थी कि मेरा शिशु कब भूख से रो रहा है, कब डाइपर बदलने के लिए रो रहा है और कब सिर्फ़ इस लिए रो रहा क्योंकि वह चाहता है कि आप उसको गोद में उठाएँ।
नवजात शिशुओं के सोने के पैटर्न बहुत ही अजीब और अनियमित होते है। मुझे याद है कि किस तरह से मेरी बेटी भी हर दो घंटे बाद रोती, उठती थी, दूध पीती थी, और फिर 2 घंटे के लिए सो जाया करती थी। शुरुआत मे मेरी बेटी कभी भी बड़े अंतरालो में नही सोई।
हर बदलते हफ्ते के साथ मैं उसके सोने के पैटर्न मे बदलाव देखती थी। 2-3 हफ़्तो के बाद उसके सोने के घंटे अपने आप ज़्यादा होते गए। कई बार तो वो 3-4 घंटे बिना उठे सो लेती थी।
कहने का तात्पर्य यह है कि अपने शिशु के सोने के पैटर्न को याद कर ले। उसको उस सोने के पैटर्न के हिसाब से सोने दे। परंतु, अगर आपका बेबी उस नियमित पैटर्न से ज़्यादा सो रहा है और उसको दूध पिए काफ़ी वक़्त गुज़र चुका है, तो उसे बहुत ही प्यार से उठाए और दूध पिलाए।
मेरा खुद का शिशु अब चार महीने का हो चुका है और उसने तो अपना एक रुटीन बना लिया है। यह रुटीन अपने आप बन जाता है। शुरू के दिनों में मैने अपने शिशु के साथ किसी किस्म की ज़ोर–ज़बरदस्ती नही की थी कि उसको किसी नियमित समय पर ही उठाना है, दूध पिलाना है और सुलाना है। मैने उसको यह सब काम उसके हिसाब से करने दिए और उसने अपने आप से सोने, जगाने और खाने–पीने की नियम बना लिए।
स्वाभाविक है कि एक नया जीवन और जीवन के नए चरण में प्रवेश करने के बाद, आपका खुद को उन बदलावों के साथ ढाल पाना थोड़ा चुनौतीपूर्ण तो होगा ही। पर आपको ध्यान में रखना है कि यह चुनौतीपूर्ण समय बहुत ही जल्दी बीत जाने वाला होता है। बस, इन चुनौतियों को स्वीकार करें और इनका आनन्द ले।
चाहे मैने भी कई दिन और रातें बिना आराम और नींद के बिताई, पर मैने उन हर क्षणो को यादों के रूप मे अपने कैमरा से क़ैद करना कभी नही भूला।
अंत में मैं यही कहना चाहूँगी कि किसी भी चुनौती का तनाव ना ले और अपने शिशु के साथ के शुरुआती पल खुशी-खुशी बिताए।
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