
बच्चे को ठोस आहार कब से देना शुरू करना है, यह कोई बहुत मुश्किल सवाल नहीं है। लेकिन बच्चों के अनाज अर्थात सीरियल्स से जुड़ी कुछ ऐसी चीजें हैं, जिनके बारे में आपको पता होना चाहिए।
जब भी बच्चे को ठोस आहार देना शुरू किया जाता है, तो इसकी शुरुआत आमतौर पर बच्चों के अनाज अर्थात सीरियल्स से ही की जाती है। लेकिन, इस बात की मेडिकल तौर पर कोई पुष्टि नहीं की गई है कि जिन बच्चों की आहार विविधीकरण प्रक्रिया बच्चों के अनाज से शुरू होती है, वह अन्य बच्चों के मुकाबले ज्यादा तंदरुस्त होते हैं।
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विशेषज्ञों के मुताबिक आहार-विविधकरण की प्रक्रिया बच्चे के जन्म के 6वें महीने के बाद ही शुरू करनी चाहिए। पहले छह महीने तक बच्चे को सिर्फ माँ का दूध (या फार्मूला दूध) ही दिया जाना चाहिए क्योंकि पहले छह महीने तक बच्चे की पोषक तत्वों की जरूरत दूध से ही पूरी होती है।
बच्चों के अनाज अर्थात सीरियल्स इतने लोकप्रिय क्यों हैं और यह क्यों देने चाहिए?
जैसे ही बच्चा 6 महीने की आयु तक पहुँचता है, उसके शरीर में आयरन की जरूरत बढ़ जाती है। अब क्योंकि ज्यादातर बच्चों के अनाज आयरन की मात्रा से भरपूर होते हैं, इसी वजह से यह माता-पिता की पहली पसंद बन जाते हैं।
यह भी माना जाता है कि किसी अन्य भोजन के मुकाबले, सीरियल्स से शिशु को किसी तरह की एलर्जी होने की संभावनाएं बहुत कम होती हैं।
माता-पिता होने के नाते आपके लिए यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि कार्बोहाइड्रेट मुख्य पोषक तत्व है जो बच्चे को ऊर्जा एवं उसके शरीर की हर कोशिका के पोषण की जरूरत को पूरा करता है, जिसमें मस्तिष्क कोशिका भी शामिल है। ऐसे में, बच्चों के अनाज कार्बोहाइड्रेट के सबसे अच्छे स्रोत हैं।
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कार्बोहाइड्रेट के अलावा, मानव शरीर को प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज और फाइबर जैसे कुछ अधिक स्थूल पोषक तत्वों की आवश्यकता भी होती है। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आपके शिशु के आहार में यह सब चीजें मौजूद हैं। इन सब चीजों के लिए बच्चों के अनाज सबसे अच्छा स्रोत हैं।
बच्चों के अनाज कितने प्रकार के होते हैं?
बच्चों के अनाज को दो मुख्य उपसमूहों में विभाजित किया जाता है: साबुत अनाज और परिष्कृत अनाज।
साबुत अनाज के समूह में गेहूं, पूरे गेहूं का आटा, जई, और भूरे चावल इत्यादि वाले सीरियल्स आ जाते हैं।
जबकि, परिष्कृत अनाज, पीसने की प्रक्रिया से गुजरने के बाद बनते हैं। इनमें बाहरी झिल्ली और कीटाणुओं को हटा कर, सिर्फ अंदरूनी झिल्ली को ही रखा जाता है। यह प्रक्रिया बच्चों के अनाज को एक चिकनी बनावट प्रदान करती है। लेकिन, इस प्रक्रिया में फाइबर, लोहा और विटामिन को भी हटा दिया जाता है। परिष्कृत अनाज के उदाहरण सफेद आटा, सफेद रोटी, भूसी वाले चावल इत्यादि हैं।
बच्चों के अनाज को कैसे बनाया जाता है?
बच्चों के अनाज को बनाना बहुत आसान है। इनको वांछित स्थिरता तक पहुंचने के लिए फार्मूला दूध या स्तन के दूध के साथ मिलाना होता है। अधिकांश बाल रोग विशेषज्ञों का सुझाव है कि शुरुआत पतले और पानी जैसी बनावट वाले सीरियल्स से करनी चाहिए। जैसे-जैसे आपका शिशु ठोस आहार का आदी होता जाता है, आपको मिश्रण को गाढ़ा करते जाना है।
बच्चों के अनाज को कैसे चुने जाता है?
आपको आकर्षक पैकिंग देखकर बच्चों के अनाज अर्थात सीरियल्स नहीं खरीदना है। ध्यान रखें, डिब्बे के सामने जो भी जानकारी दी है, वह सिर्फ आपको लुभाने के लिए दी गई है। उसमें कितना सत्य है यह जानने के लिए आपको डिब्बे के पीछे या साइड पर देखना होता हैं। यह दो वह क्षेत्र है जहां पोषण संबंधी जानकारी दी जाती है। प्रति सेवारत फाइबर, चीनी और नमक की मात्रा के बारे में ध्यान से पढ़ना और समझना बहुत जरूरी है।
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आपकी जानकारी के लिए बता दें कि डिब्बा बंद बच्चों के अनाज को खास तरह की प्रक्रिया से गुजारा जाता जिसे बहिर्वेधन अर्थात एक्सट्रूशन कहा जाता है। इस प्रक्रिया में फलियों का बहुत अधिक तापमान और दबाव पर प्रसंस्करण किया जाता है। प्रसंस्करण के दौरान, वे अपनी अधिकांश पोषण सामग्री खो देती हैं।
यह सच है कि इस प्रक्रिया के दौरान नष्ट हो चुकी तत्वों की भरपाई कर दी जाती है, लेकिन फिर भी फाइबर की कोई भरपाई नहीं हो पाती। इसीलिए इस तरह के उत्पादों से बच्चों को पर्याप्त मात्रा में फाइबर नहीं मिलता।
इसके साथ ही, इस बात का भी ध्यान रखें कि भले ही डिब्बे पर “पूरा अनाज” लिखा भी गया है, तो भी इसका मतलब यह नहीं है कि उसमें 100% साबुत अनाज होगा।
अंत में, हम सुझाव देते हैं कि आपको रंग-बिरंगी पैकिंग से भ्रमित होने के बजाय पोषण संबंधी मात्राओं पर अपना ध्यान केंद्रित करना है। इसी में आपकी और आपके बच्चे की भलाई है।
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