
नवजात शिशु में जब रक्त में शर्करा का स्तर सामान्य से कम हो जाता है, तो उस अवस्था को अधोमधुरक्तता/रक्तशर्कराल्पता (Hypoglycemia) कहते हैं। नवजात शिशुओं के मामले में यह समस्या बहुत गंभीर हो सकती है और ज्यादातर उन बच्चों को होती है, जो या तो वक्त से पहले हो जाते हैं या गर्भावस्था के दौरान जिन बच्चों की मां मधुमेह से पीड़ित थी।
नवजात शिशु के रक्त में शर्करा का सही स्तर क्या होता है?
- अगर शिशु का जन्म समय से पूर्व हुआ है और उसका वजन भी निर्धारित से कम है, तो उसके रक्त में शर्करा का स्तर 30 मिलीग्राम / डीएल से कम नहीं होना चाहिए।
- अगर शिशु का जन्म निर्धारित समय पर हुआ है और वजन भी ठीक है, तो उसके रक्त में शर्करा का स्तर 40 मिलीग्राम / डीएल से कम नहीं होना चाहिए।
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हाइपोग्लाइसीमिया अर्थात अधोमधुरक्तता तब होता है जब शरीर में शर्करा की मांग सप्लाई से ज्यादा होती है अर्थात शरीर जरूरत के हिसाब से शर्करा नहीं बना पाता। शिशुओं को लैक्टोज (दूध में उपस्थित चीनी) से शर्करा मिलता है। कुछ बच्चों को रक्त में शर्करा की पर्याप्त मात्रा बनाए रखने में बड़ी कठिनाई होती है। लंबी अवधि तक रक्त में शर्करा की कमी केंद्रीय स्नायुतंत्र अर्थात सेंट्रल नर्वस सिस्टम को भी प्रभावित कर सकती है।
नवजात शिशुओं में हाइपोग्लाइसीमिया अर्थात अधोमधुरक्तता/रक्तशर्कराल्पता के लक्षण
- क्षिप्रहृदयता अर्थात टैचिर्डिया – ऐसी स्थिति जिसमें दिल की दर प्रति मिनट 90 स्ट्रोक या इससे अधिक हो जाती है।
- पीला – त्वचा पीला हो जाती है।
- अल्प तपावस्था अर्थात हाइपोथर्मिया – यह शरीर की वह स्थिति होती है जिसमें तापमान सामान्य से कम हो जाता है।
- सुस्ती एवं मांसपेशियों में कमज़ोरी – हाइपोग्लाइसीमिया की वजह से शरीर में भारी थकान, सुस्ती, सिरदर्द एवं मांसपेशियों में कमजोरी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
- चिड़चिड़ापन – शिशुओं में चिड़चिड़ापन, क्रोध, खीज जैसे संकेत दिखने लगते हैं।
- टिकापेना – बच्चा बहुत तेज और उथले साँस लेने लगता है अर्थात शिशु एक मिनट में सामान्य से अधिक श्वास लेता है।
- श्वासरोध – फेफड़ों से रक्त में पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुँचती है।
- चीखना और चिल्लाना – हाइपोग्लाइसीमिया की वजह से जब बच्चे के शरीर में ऊर्जा की कमी होती है, तो वह असुविधा जताने के लिए चीखने-चिल्लाने लगता है।
- फटे हुए होंठ – हाइपोग्लाइसीमिया की वजह से शिशु के होंठ फटने लगते हैं। कई बार होंठ या जीभ स्तब्ध/सुन्न भी हो जाती है।
- दौरा पड़ना – हाइपोग्लाइसीमिया की वजह से शिशु को दौरे भी पड़ने लगते हैं।
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नवजात शिशुओं में हाइपोग्लाइसीमिया के कारण
- मां में मधुमेह मेलिटस
- जन्म के समय हाइपोक्सिया या श्वासरोध
- अंतर्गर्भाशयी विकास मंदता अर्थात भ्रूण का सामान्य दर से विकसित न होना।
- जन्म के समय शिशु के वजन का कम होना।
- त्वरित चयापचय।
- ग्लुकोनियोजेनेसिस की कम क्षमता।
- अतिरिक्त इंसुलिन।
- र्मोनल स्राव आदि के विकार।
हाइपोग्लाइसीमिया और सेप्सिस जैसी बीमारियों के लक्षण काफी हद तक मिलते जुलते होते हैं। इसलिए, अगर बच्चे में हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षण देखते हैं, तो मेडिकल जांच में देरी न करें।
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रक्त परीक्षण, आपके बच्चे के रक्त में शर्करा का वास्तव स्तर पता लगाने का एकमात्र तरीका है।

परीक्षण के लिए एड़ी में सुई चुभा कर रक्त का नूमना लिया जाता है और इसे जांच के लिए भेजा जाता है।
नवजात शिशुओं में हाइपोग्लाइसीमिया का इलाज कैसे किया जाता है
इस विकार से प्रभावित नवजात बच्चे को जन्म के पहले घंटों में स्तनपान या माँ का दूध देना बहुत जरूरी होता है। अगर माँ या बच्चे में से कोई भी स्तनपान की स्थिति में नहीं है, तो भी शिशु को माँ का दूध पहुँचना बहुत जरूरी है। इसके लिए आप या तो स्तनपान के लिए एक विशेष रूप से बनाई गई ट्यूब का इस्तेमाल कर सकते हैं।
यदि नवजात शिशु खुद से स्तनपान करने में असमर्थ है, और रक्त शर्करा का स्तर बहुत कम है, तो डॉक्टर ग्लाइसेमिक स्तरों को पुनर्व्यवस्थित करने के लिए अंतःशिरा शर्करा का उपयोग करते हैं।
जब उपरोक्त उपाय विफल हो जाते हैं, तो डॉक्टर दवा की सलाह देते हैं। रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ाने या इंसुलिन के स्तर (जो इस तरह के मामलों में बहुत अधिक होता है) को कम करने के लिए दवाएं निर्धारित की जाती हैं।
अधिकतर मामलों में नवजात शिशु हाइपोग्लाइसीमिया के उपरोक्त इलाज के पक्ष में प्रतिक्रिया देते हैं। लेकिन, कुछ ऐसे दुर्लभ मामले होते हैं, जिनमें उपचार के लिए सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है।
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इन सब उपचारों के बाद भी, जन्म के पहले 6 घंटों में हर दो घंटे बाद, और फिर 12, 24 और 48 घंटों के बाद ग्लाइसेमिक स्तर की निगरानी की जाती है।
इसलिए हाइपोग्लाइसीमिया से संकेत दिखने पर इसके इलाज में देरी न करें क्योंकि आपकी छोटी सी लापरवाही के कारण आपके शिशु के मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। साथ ही उसे कई प्रकार की मानसिक समस्यााओं का भी सामना करना पड़ सकता है।
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