
गर्भावस्था एक बहुत ही खूबसूरत प्रक्रिया है, और इसके बिना किसी नई ज़िन्दगी की कल्पना कर पाना नामुमकिन है।
गर्भावस्था तीन तिमाही अंतरालों में विभाजित होती है और एक सामान्य गर्भावस्था 37 – 42 हफ़्तों तक चलती है। पहली तिमाही (1 से 13 हफ्ते तक) में गर्भधारण किया जाता है, और इस तिमाही के पहले 2 हफ़्तों का तो पता भी नहीं चलता।
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पहली तिमाही इतनी महत्वपूर्ण क्यों होती है?
अक्सर कहा जाता है कि गर्भावस्था के पहले 3 महीने अर्थात पहली तिमाही बहुत महत्वपूर्ण होती है। वास्तव में, इस अवधि में भ्रूण में कई परिवर्तन होते हैं जो इस तिमाही को एक महत्वपूर्ण चरण बना देते हैं।
पहला महीना
पहले महीने में अंडे के चारो तरफ एक (एमनीओटिक) थैली नुमा चीज़ बन जाती है। यह थैली भ्रूण के लिए एक तकिये जैसा काम करती है और भ्रूण को सुरक्षित रखती है। नाल, जो मां से बच्चे तक पोषक तत्वों को स्थानांतरित करती है, वह भी पहले महीने में ही बनती है। इसके इलावा पहले महीने में आपके बच्चे की आँखें, मुँह, जबड़े, गले और रक्त कोशिकाओं का भी विकास शुरू हो जाता है।
दूसरा महीना
दूसरे महीने में शिशु का चेहरा, बाहें, पैर, उंगलियां बननी शुरू हो जाती है। इसी महीने में शिशु का पाचन तंत्र (digestive system) भी विकसित होने लगता है। न्यूरल ट्यूब जो रीढ़ की हड्डी, मस्तिष्क और नसों का निर्माण करती है, उसका निर्माण भी दूसरे महीने में ही शुरू होता है।
तीसरा महीना
तीसरे महीने तक आपके बच्चे की बाहें, हाथ, उंगलियां, पैर और पैर की उंगलियां काफी हद तक विकसित हो जाती है। इस महीने में बच्चा अपनी मुट्ठी और मुंह को खोल एवं बंद कर सकता हैं। इसके इलावा कानों, हाथों एवं पैरों की गलियों के नाख़ून, और दांत बनने भी शुरू जो जाते है। संचलन, मूत्र प्रणाली और जिगर पहले से ही अपना काम शुरू कर चुके होते है। इस महीने तक प्रजनन अंग भी आंशिक रूप से बन चुके होते हैं।
चूंकि इस चरण में आपके बच्चे का सबसे महत्वपूर्ण विकास होता है, इसलिए कई चीज़े जैसे सिगरेट, शराब, एक्सरे, कुछ दवाइयों के इस्तेमाल से शिशु को बहुत गंभीर खतरा हो सकता है। पहली तिमाही के दौरान ही शिशु के विकासशील अंगों का नुकसान हो सकता है और जन्म सम्बन्धी दोष भी उत्पन्न हो सकते हैं।
इस तिमाही के ख़त्म होने तक तक़रीबन सभी अंगों का गठन हो जाता है, अतः पहली तिमाही के बाद गर्भ को किसी किस्म का खतरा या गर्भपात होने की संभावना न के बराबर हो जाती है।
पहली तिमाही में शारीरिक बदलाव
एस्ट्रोजेन, प्रोजेस्टेरोन और एंडोर्फिन (गर्भावस्था हार्मोन) के तेजी से बढ़ते स्तर, गर्भाशय की दीवार और भ्रूण के आरोपण के विकास को प्रोत्साहित करते हैं। दूसरे सप्ताह में, भ्रूण के आरोपण की वजह से रक्तस्राव हो सकता है, जो कि गलती से (आमतौर पर) छोटी अवधि का मासिक धर्म समझ लिया जाता है। यह ध्यान रहे कि भारी रक्तस्राव और ऐंठन जैसे निर्देश, एक्टोपिक गर्भावस्था अर्थात अस्थानिक गर्भावस्था की ओर संकेत करतें है और इसकी तुरंत डॉक्टरी जांच ज़रूरी होती है।
हार्मोनल प्रभाव
गर्भावस्था हार्मोन्स का मिश्रण, शरीर प्रणालियों को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित करता है और महिलाओं द्वारा अनुभव किए जाने वाले कई लक्षणों के लिए जिम्मेदार हैं।
पाचन तंत्र
गर्भावस्था के हार्मोन आपके पाचन तंत्र के माध्यम से भोजन के पाचन की गति को धीमा कर देते हैं, जिससे भोजन को आपके खून में अवशोषित होने और आपके बच्चे तक पहुंचने में अधिक समय मिलता है। पेट खाली होने में ज़्यादा समय लगने के कारण गर्भवतियों को जी मिचलाना, उल्टी, और कब्ज जैसी शिकायतें होने लगती है।
संचार प्रणाली
इस अवधि में गर्भावस्था हार्मोन्स की वजह से रक्त वाहिकाओं में फैलाव आता है, जिससे बच्चे को पहुंचने वाले रक्त के प्रवाह में भी बढ़ोतरी होती है। इसी वजह से कार्नियल दबाव भी बढ़ जाता है, जिससे गर्भवती को माइग्रेन और सिरदर्द जैसी तकलीफें एवं लंबे समय तक खड़े रहने की वजह से चक्कर आने जैसी शिकायते भी हो सकती हैं। रक्त वाहिकाओं में यही फैलाव, भगशेफ (clitoris ) में अतिसंवेदनशीलता और योनि (vagina) में अति उत्तेजना पैदा करता है।
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प्रोजेस्टेरोन (एक प्रकार का हार्मोन) थकान का कारण बनता है। कुछ महिलाओं को मुँहासे, कुछ को किसी खास किस्म के भोजन की तीव्र इच्छा और कुछ को चिड़चिड़ेपन का भी अनुभव होता है। मूड में बदलाव एक आम बात है। गर्भवती का खुद को कभी उत्साहित और कभी उदासी महसूस करना आम बात है। आपके पेट का आकर भी आपके बच्चे के विकास के मुताबिक बढ़ने लगता है।
इसके साथ ही स्तनों का आकार भी बढ़ने लगता है क्योंकि आपका शरीर बच्चे को स्तनपान करवाने के लिए तैयार हो रहा होता है। रक्त प्रवाह बढ़ने के कारण महिलााओं का चेहरा गुलाबी रंग का हो जाता है और उस पर चमक भी आ जाती हैं। इनमें से अधिकतर परिवर्तन अस्थायी हैं और पहली तिमाही के बाद कम हो जाते हैं। इस अवधि में आपको छोटी दुरी तक पैदल चलने जैसे व्यायाम करने चाहिए और छोटे-छोटे अंतरालों में नींद भी ज़रूर लेनी चाहिए। अपनी और गर्भ में पल रहे शिशु की बेहतरी के लिए ठीक से खाना, अच्छी मात्रा में पानी पीना और नियमित रूप से अपने डॉक्टरी जाँच करवाना भी बेहद ज़रूरी होता है। किसी भी किस्म की लापरवाही, आपके और आपके शिशु के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।
अंत में मैं यह कहना चाहूंगी कि अपने अंदर पल रही ज़िन्दगी के लिए, खुद का खास तौर पर ध्यान रखें। आपकी छोटी सी लापरवाही न सिर्फ आपके आने वाले शिशु को सारी उम्र के लिए परेशानी में डाल सकती है, बल्कि आपको भी पछताने पर मज़बूर कर देगी।
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